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ठगिनी और व्यापारी भाग-8

      भाग-8

वे जैसे ही कमरे के अन्दर जाते हैं ठग की छोटी बेटी रूपवती अपने बालों को सवार रही थी. दिखने में वो एंजिलिना जोली से कम न थी. घुटनों तक के खूबसूरत और चमकदार बाल, शरारती नयन, केतकी के फूल की पंखुड़ियों से उसके प्यारे होठ, किसी पर्वत के ऊपर से बहते झरने की तरह उसकी सुन्दर भोहें.. उफ़.. एक बार अपने खुले बालों को लहरा दे तो कोई भी नौजवान बलि का बकरा बन जाए. वह अपने परिवार की सबसे कुशल ठगिनी थी. वह जितनी खूबसूरत थी उससे कहीं ज्यादा निर्दयी थी. न जाने कितने निर्दोषो को उसने मारा था. उसका पिताजी जैसे ही उसके पास पहुँचता है वह उसकी तरफ एक शैतानी मुस्कराहट मुस्कुराते हुए कहती है- आ गए पिताजी. कभी तो खुद से काम कर लीजिए. आप और दीदी जैसे ही कोई बड़ा खिलाडी आता है उसे निपटाने का काम मुझे ही देते हैं.
अनंत प्रिया- तो क्या करें छुटकी? आज वाला बहुत शातिर है. एक तो हमें अब तक पता नहीं है की उसने धन कहाँ छुपा रखा है? और दूसरा उसने हमारी दोनों ही योजना को असफल बना दिया.
रूपवती- अच्छा. चलो कोई न मैं जाती हूँ. मैं भी तो देखूं वो इस रूपवती के रूप से कैसे मोहित होकर सब सच-सच नहीं बता देता हैं.

ठग- हाँ..हाँ जाओ बेटा जाओ मेरा आशीर्वाद तुम्हारे साथ है.

उसने अपने पिताजी के कहे अनुसार एक बड़ा सा खंजर लिया जिसे उसने अपनी बगल में छुपा लिया. इसके अलावा उसने एक बेहोश करने वाली दवा की डिबिया (बोतल) को भी अपने साथ ले लिया. फिर उसने एक दूध का गिलास हाथ में लिया और यशवर्धन के कक्ष की तरफ चल दी.
इधर यशवर्धन कक्ष के एक कोने में उदास बैठा था.. वह उस घर से बाहर निकलने की योजना बना रहा था लेकिन उसके दिमाग में कोई विचार नहीं आया. वह चिंतनशील अवस्था में बैठा हुआ था की अचानक कमरे के दरवाजे को पीटने की आवाज सुनाई दी. यशवर्धन डरता हुआ कमरे के दरवाजे की तरफ बढ़ा. उसने कांपती हुई आवाज में पूछा- क..क..कौन?
रूपवती- मैं रूपवती.. दरवाजा खोलिए.. आपके लिए दूध लेकर आई हूँ.
यश- मैं कभी दूध नहीं पीता.

रूपवती- अच्छा. लेकिन आप दरवाजा तो खोलिए न..

यश- ठ..ठ..ठीक है..

फिर यशवर्धन ने डरते हुए दरवाजा खोला. दरवाजे पर रूपवती को देखकर वो हक्का-बक्का रह गया. वह साडी में किसी परी से कम नहीं लग रही थी. उसके मुख पर कातिलाना मुस्कराहट थी. रूपवती ने दरवाजे को बंद किया और यशवर्धन की तरफ मुस्कुराते हुए कहा- आप अब तक सोये नहीं. मेरी बहन ने कितना खूबसूरत बिस्तर लगाया था आपके लिए.
यश- हा हा हा.. कमाल है. पहले तो आपकी बहन ने हमारे लिए इतना अच्छा खाना बनाया की अगर वो बिल्ली मेरे पास नहीं होती तो मैं लुढ़क जाता और अब अगर मैंने सोने से पहले इस बिस्तर को न सम्भाला होता तो नीचे तेल में तलकर मेरी भुर्जी बन जाती. और आप कह रही हो मैं सोया क्यों नहीं अब तक?
रूपवती- अच्छा. लेकिन आप चिंता न करें मैं मेरी बहन और मेरे पिताजी की तरह नहीं हूँ.
यश- हा हा हा. पता है.. आप उनसे भी ज्यादा खतरनाक हैं. अब शायद दूध में भी जहर मिलाकर लाई हैं.
रूपवती- नहीं ऐसा कुछ भी नहीं है. मैं सच बोल रही हूँ मैं बिलकुल भी ऐसी नहीं हूँ और इस दूध में कोई जहर-वहर नहीं है.
यश- लेकिन इसका मैं कैसे यकीन करूँ?
रूपवती- अच्छा. कोई बात नहीं अगर इस दूध का मैं एक घूँट पीकर दिखा दूं फिर तो यकींन हो जाएगा न आपको.
यश- हाँ हो जाएगा. पीकर बताईये फिर.
रूपवती- ठीक है.
फिर रूपवती ने दूध के गिलास में से एक घूँट दूध का पी लिया. यशवर्धन उसको ध्यान से देख रहा था. उसे जैसे ही पता चला की दूध में जहर नहीं मिला हुआ है तो उसने जल्दी से रूपवती के हाथो से दूध का गिलास छीन लिया और एक ही बार में सारा दूध पी लिया.
यश- आह.. वाह मजा आ गया लेकिन एक ही गिलास क्यों लेकर आई? मुझे भूख लगी थी. एक और ले आती तो आपकी मेहरबानी होती.
रूपवती ने शैतानी मुस्कराहट मुस्कुराते हुए कहा- अच्छा. लेकिन मैं यहाँ आपको दूध पिलाने नहीं एक काम की बात करने आई हूँ.
यश- क्या?
रूपवती- मैंने सुना है की आपके पास धन है. अब मुझे बातों को घुमाने की आदत नहीं हैं. मैं ठहरी एक ठगिनी. इस लिए सीधी काम की बात करुँगी. तुम्हारे पास जो भी धन है वो निकालकर मुझे दे दो मैं अपने पिताजी से कहकर तुम्हे यहाँ से आजाद करवा दूँगी.
यश- अच्छा-.. लेकिन मेरे पास कोई धन नहीं है. मैं तो एक गरीब आदमी हूँ. भला मेरे पास कहाँ से पैसे आएँगे?
रूपवती ने क्रोधित होकर खंजर निकाल लिया और उसे डराते हुए कहा- देखो चुप-चाप मुझे अभी बता दो की तुम्ने अपना धन कहाँ छुपा रखा है? वरना ये खंजर तेरे पेट में घूसाऊंगी और पिछवाड़े से निकाल दूँगी.
यश- उफ़.. इतनी खूबसूरत लड़की पर इतना गुस्सा जचता नहीं है. यह उम्र प्यार करने की है न की खंजर घुसाने की. तुम कहो तो मैं अपना दिल तुम्हे दे दूं..
रूपवती- अपने पास रखो संभालकर. इस रूपवती को पैसों के सिवाय और कुछ नहीं चाहिए. मुझे फालतू की चीजें पसंद नहीं हैं. चुप चाप धन निकालो वरना मैं तुम्हे जान से मार दूँगी.
यश- अरे पगली. बोला न. ये उम्र मारने मरने की नहीं है. बस प्यार करने की है. तुम बहुत खूबसूरत हो.
रूपवती- देखो मुझे बकवास सुनने की आदत नहीं है. धन निकालते हो या अभी खंजर तेरे पेट में घूसाऊँ.
यश- अरे! अरे.. भला ये क्या बात हुई लेकिन रूपवती अगर तुमने मुझे मार दिया तो तुम कभी खुश नहीं रह पाओगी.
रूपवती- क्या मतलब? तुम्हे मारने से भला मैं खुश क्यों नहीं होउंगी? जल्दी बोल कमीने वर्ना मैं तेरे पेट मैं खजर घूसों दूँगी.

क्रमश.....


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3 Comments

Dilawar Singh

15-Feb-2024 03:22 PM

अद्भुत 👌👌

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Fiza Tanvi

20-Nov-2021 01:09 PM

Good

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Miss Lipsa

30-Aug-2021 03:50 PM

Super

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